इसे जनविरोधी और उपभोक्ताओं पर बोझ बताते हुए किसी भी हाल में स्वीकार न करने की बात कही। चेतावनी दी कि अगर सरकार उनकी मांगों को अनसुना करती है कि तो नौ जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल होगी।
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार घाटे के फर्जी आंकड़ों के आधार पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण करना चाहती है। वितरण निगमों पर घाटा गलत बिजली खरीद समझौतों के कारण है।
निजी कंपनियों को बिना बिजली लिए सालाना 6761 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा रहा है। साथ ही महंगी दरों पर बिजली खरीद से हर साल 10 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ वितरण निगमों पर पड़ता है।
किसानों, बुनकरों और बीपीएल उपभोक्ताओं को दी जा रही सब्सिडी को घाटा बताकर निजीकरण का तर्क गढ़ा जा रहा है, जबकि उप्र सरकार की नीति के अनुसार गरीबों को 3 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है, जबकि उत्पादन लागत 7.85 रुपये है।
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