निजीकरण के लिए घाटे के झूठे आंकड़े पेश कर रही सरकार

उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के विरोध में बुधवार को कर्मचारियों ने धरना दिया। नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स के आह्वान पर रॉबर्ट्सगंज डिविजन कार्यालय पर धरने के दौरान कर्मचारियों ने निजीकरण के विरोध में आवाज बुलंद की
इसे जनविरोधी और उपभोक्ताओं पर बोझ बताते हुए किसी भी हाल में स्वीकार न करने की बात कही। चेतावनी दी कि अगर सरकार उनकी मांगों को अनसुना करती है कि तो नौ जुलाई को राष्ट्रव्यापी हड़ताल होगी।
वक्ताओं ने आरोप लगाया कि सरकार घाटे के फर्जी आंकड़ों के आधार पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों का निजीकरण करना चाहती है। वितरण निगमों पर घाटा गलत बिजली खरीद समझौतों के कारण है।
निजी कंपनियों को बिना बिजली लिए सालाना 6761 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा रहा है। साथ ही महंगी दरों पर बिजली खरीद से हर साल 10 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ वितरण निगमों पर पड़ता है।
किसानों, बुनकरों और बीपीएल उपभोक्ताओं को दी जा रही सब्सिडी को घाटा बताकर निजीकरण का तर्क गढ़ा जा रहा है, जबकि उप्र सरकार की नीति के अनुसार गरीबों को 3 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली मिलती है, जबकि उत्पादन लागत 7.85 रुपये है।
निजीकरण के बाद सब्सिडी खत्म कर दी जाएगी, जिससे उपभोक्ताओं को 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदनी पड़ेगी। इससे सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल और बुंदेलखंड जैसे गरीब इलाकों के उपभोक्ताओं को होगा। प्रदर्शन में महेश कुमार, राजेंद्र प्रसाद, कमलेश बिंद, शैलेश प्रजापति, एके सिंह आदि शामिल रहे।

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