हरदोई। शिव सत्संग मण्डल के अम्बरीष कुमार सक्सेना के अनुसार
बुद्ध पूर्णिमा एक पावन और महत्वपूर्ण त्योहार है जो महात्मा गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण के अवसर पर मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख मास की पूर्णिमा को आता है और विशेष रूप से धर्म अध्यात्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पूज्यनीय होता है। इस दिन का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है।
गौतम बुद्ध का जन्म लगभग 563 ईसा पूर्व में वर्तमान नेपाल के लुंबिनी नामक स्थान पर हुआ था। उनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था। वे शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। विलासपूर्ण जीवन के बावजूद उन्होंने संसार के दुःख, रोग, वृद्धावस्था और मृत्यु को देखकर वैराग्य धारण किया और सत्य की खोज में राज महल त्याग दिया। वर्षों की तपस्या और ध्यान के बाद उन्हें बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे "बुद्ध" यानी "ज्ञान प्राप्त" कहलाए।
बुद्ध पूर्णिमा तीन प्रमुख घटनाओं को एक साथ मनाने का दिवस है।
सिद्धार्थ गौतम का जन्म इसी दिन हुआ था।बोधगया में इसी दिन उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया।कुशीनगर में इसी दिन उन्होंने देह त्याग किया।
इसलिए यह दिन बौद्ध अनुयायियों के लिए तीन गुना पवित्र होता है। यह आत्मचिंतन, करुणा, शांति और अहिंसा का संदेश देता है।
बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध मठों और विहारों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। लोग सुबह-सुबह स्नान करके महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को स्नान कराते हैं, धूप, दीप, फूल और फल चढ़ाते हैं। बौद्ध ग्रंथों का पाठ, ध्यान और उपदेश श्रवण किया जाता है। अनेक स्थानों पर जुलूस, संगोष्ठी, धार्मिक व्याख्यान और दान-पुण्य के आयोजन भी होते हैं। यह दिन करुणा, दया और प्रेम का व्यवहार करने की प्रेरणा देता है।
गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने अहिंसा, सत्य, संयम, और आत्मज्ञान पर बल दिया। उनका संदेश आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। उन्होंने जाति-पांति, भेदभाव और अंधविश्वास का विरोध किया और मानवता को मुख्य धर्म बताया।
इसलिए बुद्ध पूर्णिमा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक जागरूकता और मानव कल्याण का दिन है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा सुख बाहरी संसाधनों में नहीं, बल्कि भीतर की शांति और ज्ञान में है। महात्मा बुद्ध का जीवन और उनके उपदेश आज भी समस्त मानव जाति के लिए एक प्रकाशपुंज हैं।
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