हमें ही फ़ैज़ समझेगी ये दुनिया बे वफ़ा कब तक..


दिनेश प्रसाद मिश्रा 
शाहाबाद में सजी मुशायरे की महफिल*
शाहाबाद 23 फरवरी।
बीती रात नगर के मोहल्ला निहालगंज स्थित उस्ताद शायर हकीम जीशान के आवास पर बज्मे अनवारे अदब की ओर से मुशायरे की महफिल सजाई गई जिसमें स्थानीय शायरों ने शिरकत की। पूर्व शिक्षा अधीक्षक अब्दुल समद हुसैन खान मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे। मुशायरे का संचालन शायर फैज हैदर वारसी ने किया और अध्यक्षता हाफिज मोहम्मद नजर खान ने की। मुशायरे की शुरुआत हकीम जीशान व डॉक्टर नईम अख्तर ने हम्द पढ़ कर की। हकीम जीशान ने गजल सुनाते हुए पढ़ा "तेरी वफ़ा के खिले नए गुल जो हमने देखे, तेरे लिखे कुछ खुतूत पढ़ कर बहुत पुराने"।
वहीद अहमद शाहबादी ने कुछ यूं अपना कलाम पेश किया " अब सरे मक़तल मेरे कातिल को पहचानेगा कौन, एक इक कतरा लहू का मेरा खंजर पी गया"।
संचालन कर रहे फैज हैदर वारसी ने पढ़ा "न जाने आजमाइश का चलेगा सिलसिला कब तक, हमें ही फ़ैज़ समझेगी ये दुनिया बेवफा कब तक, अगर तू छोड़ना चाहे तो मुझको छोड़ सकती है, तुझे ऐ जिंदगी मेरी मैं दूं अब आसरा कब तक"।
हास्य व्यंग्य के शायर डाक्टर नईम अख्तर ने पढ़ा "डालकर चूल्हे में दीवान ये बोली बीवी, ऐ निखट्टू तेरे अशआर की ऐसी तैसी"
मास्टर इजहार ने पढ़ा "मेरे जीने के लिए एक सहारा थी यही, सामने से तेरी तस्वीर हटा दी किसने"।
एडवोकेट सुल्तान अख्तर ने पढ़ा "अक्ल कहती है मुहब्बत कहीं धोखा तो नहीं, दिल ये कहता है मोहब्बत पे भरोसा करिए"।
मास्टर अनीश शाहबादी ने पढ़ा "किसी के जिस्म को कम है लिबास रेशम का, किसी की लाश कफ़न के बगैर गलती है"।
इसके अलावा डाक्टर अजहर हुसैन वारसी, हाजी हनीफ शाहबादी, असर शाहबादी, शान मोहम्मद नूरी ने अपने कलाम पेश किए।
आधी रात के बाद खत्म हुए मुशायरे में मशकूर हुसैन खान, मोहम्मद साजिद, गुड्डू कपड़े वाले, फरहत हुसैन खान, जमन खान, अली खान, मोहम्मद फैज खान, वारिस अली खान और नावेद खान सहित सैकड़ों की संख्या में श्रोता आखिर तक मौजूद रहे। अंत में अध्यक्ष हाफिज मोहम्मद नजर खान ने सभी का आभार व्यक्त किया।

0/Post a Comment/Comments

Stay Conneted

Stay Here